उत्तराखंड में हरेला पर्व की तैयारियां शुरू, 7 जुलाई को बोया जाएगा, 16 जुलाई को होगा समापन
प्रताप सिंह नेगी की कलम से
अल्मोड़ा। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में प्रकृति, परंपरा और पर्यावरण से जुड़ा प्रमुख त्योहार हरेला 7 जुलाई को बोया जाएगा और 16 जुलाई को इसे विधिपूर्वक काटा जाएगा। सावन मास में मनाया जाने वाला यह पर्व, हरियाली, समृद्धि और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक माना जाता है।
हरेला पर्व कुमाऊं क्षेत्र में साल में तीन बार मनाया जाता है— चैत्र नवरात्रि, आश्विन नवरात्रि और सावन मास में। इनमें से सावन मास का हरेला सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह वर्षा ऋतु की शुरुआत, हरियाली और जीवन के पुनर्जागरण का प्रतीक होता है। वहीं गढ़वाल मंडल में इस पर्व को मूल संक्रांति या राई संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
हरेला बोने की प्रक्रिया पारंपरिक रूप से घर की कुंवारी लड़कियों या बुजुर्गों द्वारा की जाती है। पहले मिट्टी को छाना जाता है और उसे टोकरी या गमले में डाला जाता है। फिर सात या नौ प्रकार के अनाजों—जैसे गेहूं, जौ, चना, मक्का आदि—का मिश्रण उसमें बोया जाता है।
बुवाई की प्रक्रिया में एक मुट्ठी अनाज और एक मुट्ठी मिट्टी को परत दर परत सात या नौ बार दोहराया जाता है। इसके बाद उसमें पानी डालकर इसे घर के साफ-सुथरे कोने में ढककर रखा जाता है और प्रतिदिन उसमें जल दिया जाता है। नौवें दिन हरेला की पूजा-अर्चना के बाद गुड़ाई (हल्की खुदाई) की जाती है। दसवें दिन सभी परिवारजन स्नान और घर की सफाई कर, बुजुर्गों द्वारा हरेला को काटा जाता है।
हरेला को सबसे पहले कुल देवी-देवताओं के मंदिरों में चढ़ाया जाता है। फिर घर के बुजुर्ग बच्चों को आशीर्वाद देते हुए उनके सिर पर हरेला रखते हैं। बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करते हुए उन्हें हरेला पूजती हैं। इस अवसर पर पारंपरिक आशीर्वचन बोला जाता है:
“ला हरियाव, ला बगाव। जिरया जागि रया, यौ दिन यौ मास भियटनें रया। एक कि इकास है जौ पांच कि पिच्चासी। धरती बराबर चौकव, आसमान बराबर ऊंच है जाया, सियक जौ तराण, हाथिक जौ बल।” इसका अर्थ होता है— “हरियाली और समृद्धि बनी रहे, जीवन में जागरूकता और शुभ समय बना रहे, जीवन लंबा और बलशाली हो।”
हरेला केवल एक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति संरक्षण का संदेश भी है। सावन में मनाया जाने वाला यह पर्व वृक्षारोपण की परंपरा से भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इस दिन लगाए गए पौधे बहुत तेजी से बढ़ते हैं और लंबे समय तक जीवित रहते हैं, इसलिए हरेला पर्व को ‘हरियाली उत्सव’ के रूप में भी मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सावन महादेव का प्रिय महीना होता है और पहाड़ों में शिव और पार्वती का वास माना जाता है। कई स्थानों पर इस दिन शिव-पार्वती की पूजा होती है तो कहीं-कहीं इसे हर-काली के नाम से भी जाना जाता है।

