समाजिक कार्यकर्ता ने पूर्व जिलाधिकारी नैनीताल पर हाईकोर्ट में दायर की पी आई एल में लगाये आरोप
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के दिये निर्देश
नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने नैनीताल के पूर्व जिलाधिकारी द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान विभिन्न स्टोन क्रेशरों में अवैध खनन एवं भंडारण पर लगाये गए मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई पहली अप्रैल को होगी।
मुख्य न्यायधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ती राकेश थपलियाल की खण्डपीठ ने मामले की अगली सुनवाई एक अप्रैल के लिए तय की है। मामले के अनुसार, चोरगलिया निवासी समाजिक कार्यकर्ता भुवन पोखरिया ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा कि वर्ष 2016-17 में नैनीताल के तत्कालीन जिलाधिकारी ने कई स्टोन क्रेशरों के अवैध खनन और भंडारण का जुर्माना जो लगभग 50 करोड़ रुपया था को माफ कर दिया।
जिलाधिकारी ने उन स्टोन क्रेशरों का जुर्माना माफ किया जिनपर जुर्माना करोड़ो में था। जबकि उन्होंने कम जुर्माने वाले स्टोन क्रेशरों का जुर्माना माफ नहीं किया। इसकी शिकायत मुख्य सचिव और खनन सचिव से की गई लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई जबकि ये कहा गया कि यह जिलाधिकारी का विशेषाधिकार है।
जब याचिकाकर्ता ने शासन से इसका लिखित रूप में जवाब मांगा तो आज की तिथि तक उन्हें इसका कोई लिखित में जवाब नहीं दिया गया। इसके बाद उन्होंने इसमें आर. टी. आई. लेकर जिलाधिकारी के नियमावली में अधिकार मांगे। उन्होंने अवैध खनन और भंडारण पर लगे जुर्माने को माफ करने का अधिकार जाना। उत्तर में औद्योगिक विभाग के लोक सूचना अधिकारी ने कहा कि लोक प्राधिकार के अंतर्गत यह धारित नहीं है। जनहित याचिका में कहा गया कि जब लोक प्राधिकार में उक्त नियम धारित नहीं है तो जिलाधिकारी ने कैसे इन स्टोन क्रेशरों पर लगे 50 करोड़ रुपये के जुर्माने को माफ कर दिया ? जबकि औद्योगिक विभाग में 21 अक्टूबर 2020 को इसपर आख्या प्रस्तुत करने को कहा था, जो प्रस्तुत ही नहीं की गई। जनहित याचिका में न्यायालय से मांग की गई है कि इसपर कार्यवाही की जाय। क्योंकि यह प्रदेश राजस्व की हानि है।
जनहित याचिका में कहा गया कि जब लोक प्राधिकार में नियम धारित नहीं है तो डीएम ने कैसे स्टोन क्रशर पर लगे 50 करोड़ रुपये का जुर्माना माफ कर दिया। याचिका के अनुसार औद्योगिक विभाग की ओर से 21 अक्तूबर 2020 को इस पर आख्या प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था लेकिन ऐसा नहीं किया गया है।
