उत्तराखंड में प्राइवेट स्कूलों की फीस और किताबों की मनमानी पर शिक्षा विभाग का बड़ा कदम
उत्तराखंड में प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि और महंगी किताबें-स्टेशनरी खरीदने के लिए विद्यार्थियों को मजबूर किए जाने की घटनाओं पर अब शिक्षा विभाग सक्रिय हो गया है।
माध्यमिक शिक्षा निदेशक, डॉ. मुकुल कुमार सती ने सभी जिला शिक्षा अधिकारियों (सीईओ) को ऐसे मामलों में कार्रवाई करने के निर्देश जारी किए हैं।
स्कूलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की चेतावनी
डॉ. सती ने स्पष्ट किया कि जिन स्कूलों द्वारा फीस और किताबों को लेकर तय मानकों का उल्लंघन किया जाएगा, उन्हें नोटिस जारी किया जाएगा और यदि आवश्यकता पड़ी तो उनकी मान्यता तक को समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि सीबीएसई द्वारा 18 अक्टूबर 2018 को जारी अधिसूचना में फीस और किताबों के बारे में स्पष्ट प्रावधान हैं, जिनके अनुसार, स्कूलों को केवल इतनी फीस लेने की अनुमति है, जिससे स्कूल के संचालन से जुड़ी सारी लागतें पूरी हो सकें। साथ ही, किताबों को लेकर समय-समय पर जारी आदेशों का पालन करना भी अनिवार्य होगा।
स्कूल फीस के लिए ठोस नीति की आवश्यकता
हालांकि, प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि पर लगाम लगाने के लिए ठोस नीति बनाने की कोशिशें अब तक अधूरी रही हैं। वर्ष 2015-16 में हरीश रावत सरकार के दौरान शिक्षा विभाग ने फीस एक्ट का ड्राफ्ट तैयार किया था, लेकिन इसे विधानसभा में पेश करने से पहले ही इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। बाद में भाजपा सरकार के कार्यकाल में शिक्षा मंत्री रहे अरविंद पांडे ने 2022 में मानक प्राधिकरण का औपचारिक आदेश जारी किया, लेकिन यह भी जमीन पर नहीं उतरा। इस साल फरवरी में वर्तमान शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने भी इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया।
कॉशन मनी और महंगी किताबों पर कड़ा आदेश
माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने यह भी बताया कि अगर किसी स्कूल ने छात्रों से कॉशन मनी ली है, तो उसे तुरंत वापस करना होगा। यदि स्कूल नियमों का पालन नहीं करते, तो उन्हें पहले नोटिस जारी किया जाएगा और फिर मान्यता को रद्द करने की कार्रवाई की जाएगी।
उत्तराखंड में आईसीएसई को छोड़कर सभी बोर्डों में एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू है, जो अपेक्षाकृत सस्ता होता है। लेकिन कई स्कूल छात्रों को महंगी सहायक किताबें खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। 13 मार्च 2018 को हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया था कि सहायक किताबें केवल जरूरत होने पर ही लगाई जा सकती हैं और ये किताबें सीबीएसई पाठ्यक्रम के अनुसार होनी चाहिए। इसके साथ ही यह आदेश भी दिया गया था कि सहायक किताबें महंगी नहीं होनी चाहिए। डॉ. सती ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी छात्र के पास पुरानी किताबें हैं, तो उन्हें नई किताबें खरीदने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
स्कूल फीस के लिए निर्धारित मानक
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एक बार एडमिशन के बाद, छात्रों से दोबारा प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाएगा।
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कॉशन मनी के रूप में कोई राशि नहीं ली जाएगी।
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स्कूल केवल हर तीन साल में एक बार, और वो भी अधिकतम दस प्रतिशत तक ही फीस बढ़ा सकते हैं।
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किसी भी स्कूल, समिति या न्यास को छात्रों से एडमिशन के लिए अतिरिक्त शुल्क या चंदा नहीं वसूलने का अधिकार होगा।
इस कदम से उम्मीद है कि प्राइवेट स्कूलों की फीस और किताबों की मनमानी पर नियंत्रण पाया जाएगा और छात्रों को बेहतर और सस्ता शिक्षा वातावरण मिलेगा।
