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शादी का झांसा नहीं, आपसी सहमति से बना संबंध – एनआरआई वैज्ञानिक बरी

“कोर्ट का फैसला: सहमति से बने संबंध को झूठे वादे का आधार नहीं माना जा सकता”

मुंबई | महाराष्ट्र की एक अदालत ने एक एनआरआई वैज्ञानिक को दुष्कर्म के गंभीर आरोपों से बरी कर दिया, जिस पर शादी का वादा कर एक महिला से शारीरिक संबंध बनाने का आरोप था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश किशोर मोरे ने कहा कि यदि कोई महिला परिस्थिति की पूरी समझ रखते हुए संबंध बनाती है, तो उसकी सहमति को “झूठे वादे के आधार पर धोखा” नहीं माना जा सकता।

यह मामला गुजरात के मूल निवासी और यूरोप में काम कर रहे एक एनआरआई वैज्ञानिक तथा ठाणे की एक 27 वर्षीय महिला के बीच का है। वर्ष 2019 में दोनों की मुलाकात एक वैवाहिक वेबसाइट के ज़रिए हुई थी। बातचीत आगे बढ़ने पर दोनों के बीच फोन पर मैसेज, वीडियो कॉल और चैट का सिलसिला शुरू हो गया।

इसके बाद 31 दिसंबर 2019 को दोनों ने मुंबई में मिलकर नया साल मनाया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, महिला ने आरोपी से पूछा कि क्या वह उससे शादी करना चाहता है, और उसने वादा किया कि वह उससे विवाह करेगा।

महिला ने आरोप लगाया कि दोनों ने मुंबई के अंधेरी इलाके में एक पांच सितारा होटल में चेक-इन किया, जहां आरोपी ने उसके पेय में नशीला पदार्थ मिलाकर उसके साथ जबरन संबंध बनाए। महिला का कहना है कि आरोपी ने संबंध बनाने के बाद धीरे-धीरे दूरी बना ली और अपने माता-पिता की असहमति का हवाला देते हुए शादी से मना कर दिया। इसके बाद पीड़िता ने आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया।

सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने व्हाट्सएप चैट पेश की, जिसमें दोनों ने आपसी सहमति से संबंध बनाने की इच्छा जताई थी। साथ ही यह तथ्य भी सामने आया कि महिला ने अपनी वैवाहिक स्थिति को वेबसाइट पर “कभी विवाहित नहीं” बताया था, जबकि वह पहले से शादीशुदा थी और इस्लाम धर्म अपना चुकी थी।

महिला ने कोर्ट में स्वीकार किया कि उसने गलती से प्रोफाइल में गलत marital status डाला और यह भी बताया कि उसने आरोपी को शुरू में बताया था कि वह तलाकशुदा है। लेकिन अभियोजन पक्ष तलाक के आधिकारिक दस्तावेज कोर्ट में पेश नहीं कर सका।

कोर्ट ने कहा कि:

  • महिला ने होटल में रुकते समय या उसके बाद किसी होटल स्टाफ से कोई शिकायत नहीं की।
  • एफआईआर दर्ज करने में 6 दिन की देरी हुई, जिसका कोई तार्किक कारण नहीं बताया गया।
  • महिला ने अपनी जिरह में स्वीकार किया कि आरोपी ने अप्रैल 2020 में उससे शादी का आश्वासन दिया था। इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि आरोपी ने शादी से इनकार किया था।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर इस बात के ठोस प्रमाण होते कि आरोपी ने जानबूझकर झूठा वादा किया था, तो मामला अलग हो सकता था। लेकिन प्रस्तुत साक्ष्यों में ऐसा कोई ठोस आधार नहीं था।

कोर्ट ने माना कि महिला और आरोपी दोनों ही समझदार, शिक्षित व वयस्क थे, और दोनों ने आपसी सहमति से संबंध बनाए। अदालत ने कहा कि,

“जब कोई महिला अपनी इच्छा से, पूरी जानकारी और विकल्पों को समझते हुए किसी संबंध में जाती है, तो बाद में उसे धोखा करार नहीं दिया जा सकता, जब तक कि यह साबित न हो कि उसे जानबूझकर गुमराह किया गया।”

इसी आधार पर कोर्ट ने एनआरआई वैज्ञानिक को सभी आरोपों से बरी कर दिया और आदेश में कहा कि यह मामला “आपसी सहमति के रिश्ते को आपराधिक रंग देने” का प्रयास प्रतीत होता है।


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