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कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय

30 सितंबर 2024 तक  विधानसभा चुनाव कराने के आदेश

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जज संजय किशन कौल, जज संजीव खन्ना, बीआर गवई और जज सूर्यकांत की पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 को रद करने वाले केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा।

सर्वोच्च न्यायालय ने आज जम्मू कश्मीर राज्य के बारे में जो ऐतिहासिक फैसला दिया है उसे भारतीय संविधान की समूचे भारत को एक तार में जोड़े रखने की अंतर्निहित शक्ति का ही प्रदर्शन होता है और यह भ्रम दूर होता है कि 1949 में भारतीय संविधान में जो अनुच्छेद जोड़ा गया था उसे इस देश में ही दोहरी संविधानिक प्रणाली को जारी रखने का लाइसेंस दे दिया गया था देश की सबसे बड़ी अदालत के पांच न्यायमूर्तियों की पीठ ने फैसला देकर साफ कर दिया की अनुच्छेद 370 एक स्थाई प्रावधान था इसलिए इसे संविधान की 21वीं अनुसूची में रखा गया था मगर इसके साथ न्यायमूर्तियों ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि 5 अगस्त 2019 को जिस तरह जम्मू कश्मीर राज्य को तोड़कर जम्मू कश्मीर को ही केंद्र शासित राज्य में तब्दील किया गया था वह उचित नहीं था क्योंकि भारत का संविधान यह हो तो इजाजत देता है कि किसी राज्य के किसी भी हिस्से को केंद्र शासित क्षेत्र में बदला जा सकता है मगर उस राज्य को ही केंद्र शासित राज्य बदलने की इजाजत नहीं है अतः मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीजेआई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में गठित पांच न्यायमूर्तियों की पीठ ने केंद्रसरकार को आदेश दिया है कि वह जम्मू कश्मीर राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की प्रक्रिया जल्दी से जल्दी बनाए। साथ ही चुनाव आयोग को निर्देशित किया है कि वह सितंबर 2024 तक वहां विधानसभा चुनाव कराकर लोकतांत्रिक सरकार के गठन की प्रक्रिया को पूरा करें। लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के निर्णय को भी न्याय मूर्तियों ने उचित माना और कहा कि केंद्र के पास अधिकार है कि वह राज्य में किसी क्षेत्र को विशेष दर्जा या अलग प्रदेश बन सकता है यह संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत होगा।

अनुच्छेद 370 मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर के संघ के साथ संवैधानिक एकीकरण के लिए था और यह विघटन के लिए नहीं था और राष्ट्रपति घोषणा कर सकते हैं कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया है।


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