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सोशल मीडिया के नुकसान हमारी सेहत पर

विशेषज्ञों का मानना है कि जब हम सोशल मीडिया पर कोई वीडियो या फोटो अपलोड करते हैं, तो हमारा दिमाग हमें अपना फोन देखने के लिए बार-बार चेक करने के लिए मजबूर करता है। और जैसे ही हमें वह खास चीज मिल जाती है जिसका हम इंतजार कर रहे थे, तब हमारे मस्तिष्क में डोपामाइन नामक एक विशेष रसायन रिलीज होता है, फिर हमें ख़ुशी मिलती है और हम रिलैक्स हो जाते हैं। मेडिकल साइंस का मानना है कि सोशल मीडिया देखने से रिलीज होने वाली डोपामाइन की मात्रा उतनी ही होती है जितनी कोकीन जैसे भयानक नशा का उपयोग करके जारी होता है। जैसे ही डोपामाइन हमारे दिमाग में स्पाइक करता है, उस वक़्त हम बहुत खुश होते हैं। लेकिन जैसे ही मात्रा सामान्य हो जाती है, हम फिर से इसकी मांग करना शुरू कर देते हैं। लेकिन डोपामाइन को दोबारा पाने के लिए हमारे पास ट्रिगर नहीं है, यह ट्रिगर सोशल मीडिया के पीछे बैठे रोबोट के पास है। यह रोबोट तय करता है कि हमारी फोटो लोगों की फीड पर कब तक दिखाई जाएगी। जब तक फोटो हमारे दोस्तों की फीड पर रहेगी, हमें लाइक मिलते रहेंगे और आखिरकार हमें डोपामाइन भी मिलता रहेगा, और जब हमारी फोटो को मित्रों के सोशल मीडिया  फ़ीड से हटा दिया जायेगा, फिर हम उसी डोपामाइन को पाने के लिए नए फिल्टर के साथ एक नई फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करेंगे, और इसी तरह यह सिलसिला चलता ही रहेगा। यानि हम मूल रूप से एक ऐसे जेल में बंद हैं जिसमें कोई सलाखे या ऊंची दीवारें नहीं है। लेकिन हम वही करते है जो ये टेक कंपनियां हमसे कराना चाहती हैं।

सोशल मीडिया के वजह से एक नई बीमारी

चिकित्सा विशेषज्ञों ने पिछले कई वर्षों में एक अजीब बीमारी देखी है और इस बीमारी को कहा जाता है सोशल मीडिया डिप्रेशन। अमेरिका में लाखों नौजवान इस बीमारी के शिकार पाए गए हैं। डॉक्टर मानते हैं कि जब हम सोशल मीडिया पर दूसरे लोगों के जीवन का नकली हिस्सा देखते हैं, तो हम उनसे अपनी तुलना करते हैं। हम अपनी तुलना ऐसे व्यक्ति से करने लगते हैं जो अपने जीवन का केवल एक प्रतिशत दिखाता है और बाकी 99 प्रतिशत छिपा रहा होता है। युवा लोग अपने सोशल मीडिया के फ़ीड को देखते जाते हैं और अपने जीवन की तुलना लोगों के जीवन के नकली हिस्से से करते जाते हैं। इसके कारण चिंता विकार और अवसाद जैसी बीमारियाँ उन्हें बहुत कम उम्र में घेर लेती हैं। कई नौजवान जब ये सब सहन नहीं कर पाते हैं, तो वे आत्महत्या भी कर लेते हैं। क्या आप जानते हैं कि सोशल मीडिया के आने के बाद अकेले अमेरिका में आत्महत्या की दर 151 प्रतिशत तक बढ़ गई है और यह और भी बढ़ती जा रही है।

सोशल मीडिया  की आदत

सबसे पहले हम ये जानते हैं कि सोशल मीडिया इतनी एडिक्टिव कैसे बनायीं जाती है? इन कंपनी के बैक बोन ऐसे लोग होते हैं, जो लोगों का ध्यान अपनी ओर मोड़ने में माहिर हैं और उन्हें अटेंशन इंजीनियर भी कहा जाता है। ये वही अटेंशन इंजीनियर हैं जो कैसिनो में विभिन्न गेम डिज़ाइन करते हैं। ये इंजीनियर मानव मस्तिष्क के साथ खेलकर एक ऐसा डिज़ाइन बनाते हैं, जिसको एक बार खेलकर ही इंसान को उसकी आदत या एडिक्शन हो जाती है, यानि उनका लक्ष्य है कि वे कुछ भी करें लेकिन विज़िटर को सोशल मीडिया  एप्लिकेशन बंद न करने दें।

यह मानव स्वभाव है कि जब भी कोई हमारी सराहना करता है, तो हमें बहुत अच्छा लगता है। इंसान की इसी फितरत को देखते हुए सोशल मीडिया पर थम्स अपलाइक या दिल का विकल्प दिया जाता है। जब भी हम किसी भी सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीर अपलोड करते हैं तो, अपनी तारीफ़ या अपनी फोटो पर लोगों की प्रतिक्रिया देखने के लिए हम बार-बार फोन उठाते हैं और अगर नहीं देखते हैं, तो बार-बार एक संदेश द्वारा संकेत दिया जाता है कि किसी ने आपकी फोटो पसंद की है। जिसका अर्थ है कि जब हम हमारे फोन से दूर जाना चाहते हैं तो, हमें एक ख़ास योजना के तहत इसे वापस लेने के लिए उकसाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि क्योंकि लोग अपनी बुरी बातें सुनना बिल्कुल भी पसंद नहीं करते हैं, इसलिए आपको कई सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर नापसंद या dislike करने का कोई ऑप्शन नहीं दिया गया है मिलेगा। जब हम सोशल मीडिया इस्तेमाल कर रहे होते हैं तो हमें पता भी नहीं चलता कि हमें एक प्लान के तहत प्रोग्राम किया जा रहा है, हमें न चाहते हुए भी, हमारी रुचि के वीडियो, फोटो और घटनाएं दिखाई जाती हैं। ये पूरी कोशिश की जाती है कि बस हम स्क्रॉल करते रहें और वीडियो देखते जाएँ।

रिश्तों के टूटने की सम्भावना का बढ़ना

आजकल लोग एक दूसरे से ज़्यादा अपने मोबाइल और सोशल मीडिया  एकाउंट्स से प्यार करते हैं। पति -पत्नी हों या माँ-बाप और बच्चे, हर कोई अपने सोशल मीडिया ग्रुप्स में ज़्यादा एक्टिव रहता है। पास बैठे लोग आपस में बात करने की जगह दूर बैठे किसी व्यक्ति से चैटिंग कर रहे होते हैं। ऐसे में रिश्तों का कमज़ोर पड़ना स्वाभाविक है। पहले के समय में लड़ाई होने पे लोग एक दूसरे के साथ बैठकर उसे सुलझाने की कोशिश करते थे आजकल लोग लड़ाई होते ही अपना अपना मोबाइल लेकर एक दूसरे से मुँह मोड़ के बैठ जाते हैं। इससे वार्तालाप कम और मनमुटाव ज़्यादा होता है। लड़ाई होने पे हम सोशल मीडिया पर बिज़ी हो जाते हैं और दूसरे लोगों से बात करने लगते हैं और हमे लगता है की हम अकेले नहीं है और हमसे बात करने वाले कितने सारे लोग हैं। ऐसे में दो लोग एक दूसरे से लड़ने के बाद बात करने की जगह सोशल मीडिया पे बिजी रहना पसंद करते हैं।वो सामने वाले को यही दिखने की कोशिश करते हैं की उनके पास बात करने के लिए और भी लोग हैं। दोस्तों सोशल मीडिया पे लोगों से बात करने में कोई खराबी नहीं है लेकिन अगर आपके निजी रिश्ते टूट रहे हैं तो सोशल मीडिया पे बने रिश्ते किसी काम के नहीं है। अगर कल को आप बीमार पड़ते हैं या आपको एक गिलास पानी भी चाहिए तो सबसे पहले वही व्यक्ति काम आएगा जो आपके पास बैठा है

सोशल मीडिया  समाज और लोगों से दूरी

एक समय था जब लोग सामने बैठकर हंसी के ठहाके लगाते थे जिससे रिश्तों में प्यार , सम्मान और निकटता बढ़ती थी लेकिन आज के सोशल मीडिया के समय में लोग बस एक छोटा सा मैसेज भेजकर अपने रिश्तों में अपनी फॉर्मेलिटी पूरी कर लेते हैं। फेसबुक , व्हाट्सप्प , टेलीग्राम आदि चीज़ों ने लोगों को कही से भी एक दूसरे से बात करने और जुड़े रहने की सुविधा दी है लेकिन लोग इसका ग़लत फ़ायदा उठाने लगे हैं। दूर के रिश्तेदार तो छोड़िये लोग अपने पड़ोसियों से भी फ़ोन पर ही बात कर लेते हैं। ये कहना ग़लत तो नहीं की आज हमे अपने पड़ोसियों की भी खबर तब मिलती है जब एक दूसरे को किसी त्यौहार पे मैसेज भेजे जाते हैं।

निचोड़

दोस्तों, सोशल मीडिया के फायदे और नुकसान दोनों हीं हैं, फायदे में जहाँ देखा जाये तो यहाँ हम अपने पुराने दोस्तों से आसानी से जुड़ जाते हैं, और कई तरह की अच्छी जानकारी भी यहाँ मिलती है। लेकिन देखा जाये तो सोशल मीडिया के नुकसान के आगे इसके फायदे शून्य के बराबर हैं। सोशल मीडिया के कारण इंसान अपने रिस्तो को खोता जा रहा है  निजी ज़िन्दगी में रिस्तो से ज्यादा इंसान को अपने सोशल अकाउंट की चिंता है सोशल मीडिया पर व्हाट्सएप फेसबुक इंस्टाग्राम या अन्य सभी ऐप में जो प्राइवेसी उपलब्ध कराई जा रही है क्या यह समाज को गलत दिशा में तो नहीं ले जा रही है आज सोशल मीडिया के कारण मानव जीवन में परिवार से अधिक मोबाइल या अन्य उपकरण जो वह लेते जा रहे हैं  हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है इसका आकलन करना बहुत कठिन है मोबाइल क्रांति में ऐ आई  जैसे विभिन्न प्रकार के टूल  जो उपलब्ध कराए जा रहे हैं  आज हमारे समाज का अधिक हिस्सा अपनी प्राइवेसी को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के एप्प का इस्तेमाल अपने मोबाइल में कर रहा है जिस कारण आज समाज में जो भी गंदगी फैल रही है इसका प्रमुख कारण आज विभिन्न मोबाइल ऐप द्वारा दी जाने वाली प्राइवेसी है  इस प्राइवेसी के कारण जो आज समाज में कुरीतियों फैल रही है बच्चे गलत राह में सोशल मीडिया के कारण धकेला जा रहे हैं क्या सोशल मीडिया द्वारा उतनी ही प्राइवेसी दी जानी चाहिए जितना मानव जीवन में आवश्यकता है इस प्राइवेसी के कारण बच्चे क्या कर रहे हैं ? गलत राह में जा रहे हैं मां-बाप को और समाज को किस प्रकार से दुष्प्रभावित कर रहे हैं  इसका आने वाले भविष्य में क्या प्रभाव पड़ेगा कह पाना कठिन है

 

 

 


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