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रामनगर में बाघ के हमलों से परेशान ग्रामीणों का विरोध, प्रशासन ने की कड़ी कार्रवाई

रामनगर। उत्तराखंड के प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के आसपास के ग्रामीण इलाकों में बाघ के हमलों से ग्रामीणों में डर और आक्रोश का माहौल बन गया है। पिछले कुछ समय से बाघ के लगातार हमले हो रहे हैं, जिससे ग्रामीणों की जान को खतरा पैदा हो गया है। जब वे इस मुद्दे पर वन विभाग के खिलाफ सड़क पर उतरे, तो प्रशासन ने उनके विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए कड़ी कार्रवाई की है।

बिजरानी रेंज में गुरुवार को एक बाघ ने पेट्रोलिंग के दौरान दैनिक श्रमिक गणेश पर हमला कर दिया। उनके साथ मौजूद कर्मचारियों ने हवाई फायरिंग कर उन्हें बचाया, लेकिन वह गंभीर रूप से घायल हो गए। यह कोई पहला मामला नहीं था, इससे पहले भी कई ग्रामीण जंगली जानवरों के हमलों का शिकार हो चुके हैं। ग्रामीण अब अपने घरों के आसपास बाघ और अन्य जानवरों से खतरे में जी रहे हैं और वन विभाग की निष्क्रियता के कारण परेशान हैं।

इस घटना के बाद शुक्रवार को गुस्साए ग्रामीणों ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के झिरना और ढेला पर्यटन जोन को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग पर प्रदर्शन किया। उन्होंने सांवल्दे वन चौकी पर जाम लगाया और वन विभाग के खिलाफ नारेबाजी की। उनका कहना था कि जब तक वन विभाग बाघ को पकड़ने की ठोस कार्रवाई नहीं करता, तब तक वे चुप नहीं बैठेंगे।

ग्रामीणों के इस विरोध प्रदर्शन के बाद प्रशासन ने सख्त कदम उठाते हुए उन पर मुकदमा दर्ज कर लिया। बिजरानी रेंज के रेंज अधिकारी भानु प्रकाश हरबोला की तहरीर पर पुलिस ने पांच ग्रामीणों को नामजद और 50 अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। पुलिस ने आरोप लगाया कि ग्रामीणों ने सरकारी काम में बाधा डाली, लेकिन सवाल यह है कि क्या अपनी सुरक्षा की मांग करना अपराध है?

इसके अलावा, प्रशासन ने पूरे क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी, जिससे अब कोई भी एकत्र होकर अपनी आवाज नहीं उठा सकता। एसडीएम राहुल शाह ने इस आदेश को लागू कर दिया, जिससे ग्रामीणों की आवाज को और दबाने की कोशिश की जा रही है।

यह सवाल उठता है कि प्रशासन की प्राथमिकता क्या है— ग्रामीणों की सुरक्षा या पर्यटन उद्योग? प्रदर्शन के कारण झिरना और ढेला पर्यटन जोन जाने वाले सैलानियों को असुविधा हुई, और प्रशासन को सिर्फ इसी बात की चिंता रही। ग्रामीणों की पीड़ा को समझने के बजाय, प्रशासन ने उन्हें अपराधी बना दिया।

यदि वन विभाग समय पर बाघ को काबू में करता और ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाता, तो क्या ग्रामीणों को सड़क पर उतरने की जरूरत पड़ती? अब ग्रामीणों के लिए समस्या दोहरी हो गई है— एक तरफ बाघ का डर और दूसरी तरफ प्रशासन का दमन।

प्रशासन और वन विभाग के रवैये से साफ है कि उनकी प्राथमिकता ग्रामीणों की सुरक्षा नहीं, बल्कि पर्यटन को बिना किसी रुकावट के जारी रखना है। अब यह देखना होगा कि आने वाले दिनों में प्रशासन और सरकार इस मामले में क्या ठोस कदम उठाती है और क्या ग्रामीण अपनी सुरक्षा के लिए संघर्ष जारी रखते हैं।


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