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देहरादून में पति-पत्नी का विवाद: लिव-इन रिलेशनशिप में गए पति-पत्नी ने बच्चों को छोड़ा, बच्चों की परवरिश पर सवाल

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से एक चौंकाने वाला और असामान्य पारिवारिक मामला सामने आया है, जिसने सामाजिक और पारिवारिक ढांचे को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटनाक्रम में एक विवाहित महिला ने अपने पति और बच्चों को छोड़कर प्रेमी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला किया, तो वहीं उसका पति भी दूसरी महिला के साथ नया संबंध बनाकर अपनी पुरानी ज़िंदगी को अलविदा कह चुका है।

पूरा मामला तब सामने आया जब दोनों पक्ष — महिला और पुरुष — अपने-अपने जीवनसाथी की शिकायत लेकर उत्तराखंड राज्य महिला आयोग पहुंचे। दोनों ने एक-दूसरे पर अपने-अपने जीवनसाथी को बहकाने और गुमराह करने का आरोप लगाया है। महिला ने कहा कि उसके पति को किसी महिला ने फंसा लिया है, वहीं पुरुष का आरोप है कि उसकी पत्नी को एक अन्य व्यक्ति ने गुमराह कर उससे दूर कर दिया।

महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल ने इस पर संज्ञान लेते हुए पुलिस को निर्देश दिए हैं कि दोनों गायब व्यक्तियों को जल्द से जल्द ढूंढकर आयोग के समक्ष पेश किया जाए। आयोग ने दोनों पक्षों की जल्द काउंसलिंग कराने की भी बात कही है, ताकि इस जटिल पारिवारिक मुद्दे को हल किया जा सके।

इस मामले में जो बात सबसे अधिक चिंता का विषय बनकर सामने आई है, वह है बच्चों की देखभाल और परवरिश। जानकारी के अनुसार, महिला अपने प्रेमी के साथ जाने से पहले अपने तीन बच्चों को अकेला छोड़ गई, जिनमें एक 15 वर्षीय बेटी भी शामिल है। वहीं पुरुष, जो अपनी पत्नी के गायब होने की शिकायत लेकर आयोग पहुंचा, उसके भी दो छोटे बच्चे हैं। बच्चों की जिम्मेदारी अब अधर में लटक गई है।

महिला आयोग को दी गई जानकारी के अनुसार, महिला पिछले कई दिनों से घर नहीं लौटी है और उसका मोबाइल फोन लगातार स्विच ऑफ है। जब आयोग ने प्रयास कर महिला के पति से संपर्क करने की कोशिश की, तो व्हाट्सएप कॉल पर उसकी पत्नी ने ही फोन उठाया, जिससे इस बात की पुष्टि हुई कि दोनों पति-पत्नी अब अलग-अलग नए संबंधों में हैं।

वहीं, जब आयोग ने पुरुष को आयोग में पेश होने के लिए कहा, तो उसने लगातार बहाने बनाए और टालमटोल करने लगा। इससे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से एक-दूसरे से दूरी बनाकर नए जीवन की शुरुआत कर दी है, लेकिन अपने पीछे बच्चों की जिम्मेदारी और मानसिक पीड़ा छोड़ दी है।

महिला आयोग की ओर से कहा गया है कि इस तरह के मामलों में सबसे अधिक नुकसान मासूम बच्चों को होता है। इसलिए आयोग का प्रयास रहेगा कि बच्चों की सुरक्षा, देखभाल और मानसिक स्थिति को प्राथमिकता देते हुए मामले का समाधान निकाला जाए।


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