हाईकोर्ट की फटकार: विकासनगर बुलडोजर कार्रवाई पर हाईकोर्ट की रोक,लेकिन बिना सुनवाई नहीं हटेंगे लोग
नैनीताल, 13 अप्रैल 2025: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने देहरादून के विकासनगर क्षेत्र में चल रही बुलडोजर कार्रवाई पर दायर विशेष याचिका पर सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश श्री जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले की सुनवाई की।
याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि उन्हें अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना प्रशासन द्वारा जबरन हटाया जा रहा है। इस पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बिना सुनवाई का अवसर दिए बस्तियों को हटाया जाना संविधान और कानून के अनुरूप नहीं है। हाईकोर्ट ने प्रशासन के ऐसे किसी भी कार्रवाई पर तत्काल रोक लगा दी है। साथ ही, राज्य सरकार से कहा है कि बिना सुनवाई के किसी को हटाया जाना न्यायसंगत नहीं माना जा सकता, विशेष रूप से तब जब सर्वोच्च न्यायालय की भी इस विषय में स्पष्ट गाइडलाइन मौजूद है।
कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देशित किया है कि वे यह स्पष्ट करें कि जिन लोगों ने नदी, नालों और गदेरों को पाटकर अवैध अतिक्रमण किया है, उन्हें चिन्हित कर अब तक की गई कार्रवाई की रिपोर्ट 15 अप्रैल 2025 तक न्यायालय में प्रस्तुत की जाए।
पूर्व में तीन जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान भी अदालत ने बार-बार आदेश दिए थे कि नदी और नालों में हुए अतिक्रमण को हटाया जाए, लेकिन प्रशासन ने अदालत के आदेशों का पूर्ण अनुपालन नहीं किया। इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए 3 अप्रैल को न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया था और सरकार से कहा था कि ऐसे सभी क्षेत्रों में जहां अतिक्रमण हुआ है, उन्हें तत्काल हटाया जाए और वहां सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इन स्थानों की निगरानी उसी तरह की जाए जैसे सड़कों के हादसाग्रस्त क्षेत्रों में की जाती है।
इसके साथ ही, न्यायालय ने उत्तराखंड के डीजीपी को निर्देश दिया कि वे संबंधित थाना प्रभारियों (SHO) को आदेशित करें कि जहां भी अतिक्रमण की घटनाएं हो रही हों, वहां दोषियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत की जाए।
इसके अतिरिक्त, शहरी विकास विभाग के सचिव को यह निर्देश दिए गए हैं कि वे प्रदेशभर में जनजागरूकता अभियान चलाएं ताकि नागरिकों को यह जानकारी दी जा सके कि नदी, नालों और गदेरों में अतिक्रमण और अवैध खनन ना करें। ऐसा करने से न केवल पर्यावरणीय नुकसान होता है, बल्कि मानसून के दौरान बाढ़ जैसी दुर्घटनाएं भी हो सकती हैं। न्यायालय ने इस विषय पर व्यापक प्रचार-प्रसार करने का आदेश दिया है।
