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15 करोड़ की जमीन के लिए 54 करोड़ क्यों दिए गए? | हरिद्वार घोटाले का पूरा सच

6 दिन में भू-उपयोग कैसे बदला गया? देखें पूरी रिपोर्ट!

दो IAS, एक PCS समेत 11 अधिकारियों पर कार्रवाई की संस्तुति

हरिद्वार। नगर निगम हरिद्वार के बहुचर्चित जमीन घोटाले की जांच पूरी हो गई है। जांच अधिकारी सचिव रणवीर सिंह चौहान ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट शहरी विकास विभाग के सचिव नितेश झा को सौंप दी। रिपोर्ट में घोटाले की पुष्टि करते हुए दो आईएएस, एक पीसीएस अधिकारी समेत कुल 11 लोगों की भूमिका को संदिग्ध बताया गया है।

सूत्रों के अनुसार, जांच में पाया गया कि गार्बेज डंपिंग यार्ड (कूड़ा निस्तारण स्थल) के विस्तार के लिए की गई भूमि खरीद प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएं बरती गईं। न केवल प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी रही, बल्कि भूमि की कीमत में भारी गड़बड़ी भी उजागर हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार, जिस भूमि के वास्तविक मूल्य लगभग 15 करोड़ रुपये थे, उसके एवज में 54 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। इस प्रकार राज्य सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ।

जांच में यह भी सामने आया कि भूमि खरीद से पहले उसका भू-उपयोग बदलने के लिए सेक्शन 143 के तहत कार्रवाई की गई। कृषि भूमि को वाणिज्यिक घोषित कर दिया गया, जिससे उसकी कीमत प्रति वर्ग मीटर 5 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये कर दी गई। यह रेट पूरी तरह विकसित वाणिज्यिक जमीन के लिए निर्धारित होता है।

चौंकाने वाली बात यह रही कि भूमि उपयोग परिवर्तन की पूरी प्रक्रिया महज छह दिनों में पूरी कर दी गई, जबकि आमतौर पर इसमें लंबा समय लगता है। जांच अधिकारी ने इस त्वरित प्रक्रिया को नियमविरुद्ध करार दिया है।

जांच रिपोर्ट के आधार पर हरिद्वार के जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह, तत्कालीन नगर आयुक्त एवं वर्तमान अपर सचिव स्वास्थ्य वरुण चौधरी, एसडीएम अजय वीर सिंह, तत्कालीन तहसीलदार, एक प्रशासनिक अधिकारी, अभियंता, लिपिक, पटवारी और डाटा एंट्री ऑपरेटर समेत कुल 11 लोगों पर कार्रवाई की संस्तुति की गई है।

सूत्रों का कहना है कि रिपोर्ट मिलने के बाद शासन स्तर पर दोषियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक व कानूनी कार्रवाई के विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। जल्द ही इस मामले में उच्चस्तरीय निर्णय लिए जा सकते हैं।

 


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