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महिला सशक्तिकरण:- जगाने के लिए महिला का जागृत होना जरुरी

स्वावलंबन की ओर अग्रसर महिला, रोजगार के साथ आर्थिक स्थिति कर रही है मजबूत

लोगों को जगाने के लिये महिलाओं का जागृत होना जरुरी है। एक बार जब वो अपना कदम उठा लेती है, परिवार आगे बढ़ता है, गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है। भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है जैसे दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, बलात्कार, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय।

सरकार को महिलाओं के वास्तविक विकास के लिये पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में जाना होगा और वहाँ की महिलाओं को सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं और उनके अधिकारों से अवगत कराना होगा जिससे उनका भविष्य बेहतर हो सके। महिला सशक्तिकरण के सपने को सच करने के लिये लड़िकयों के महत्व और उनकी शिक्षा को प्रचारित करने की जरुरत है।

महिला सशक्तिकरण के द्वारा ये संभव है कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था के महिला-पुरुष समानता वाले वाले देश को पुरुषवादी प्रभाव वाले देश से बदला जा सकता है। महिला सशक्तिकरण की मदद से बिना अधिक प्रयास किये परिवार के हर सदस्य का विकास आसानी से हो सकता है। एक महिला परिवार में सभी चीजों के लिये बेहद जिम्मेदार मानी जाती है अत: वो सभी समस्याओं का समाधान अच्छी तरह से कर सकती है। महिलाओं के सशक्त होने से पूरा समाज अपने आप सशक्त हो जायेगा।

भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता के बहुत से कारण सामने आते हैं। प्राचीन काल के अपेक्षा मध्य काल में भारतीय महिलाओं के सम्मान स्तर में काफी कमी आयी। जितना सम्मान उन्हें प्राचीन काल में दिया जाता था, मध्य काल में वह सम्मान घटने लगा था।
आधुनिक युग में कई भारतीय महिलाएँ कई सारे महत्वपूर्ण राजनैतिक तथा प्रशासनिक पदों पर पदस्थ हैं, फिर भी सामान्य ग्रामीण महिलाएँ आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य है और उन्हें सामान्य स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध नही है।भारत के शहरी क्षेत्रों की महिलाएँ ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के अपेक्षा अधिक रोजगारशील है, आकड़ो के अनुसार भारत के शहरों में साफ्टवेयर इंडस्ट्री में लगभग 30 प्रतिशत महिलाएँ कार्य करती है, वही ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 90 फीसदी महिलाएँ मुख्यतः कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों में दैनिक मजदूरी करती है।

समाज में पुरुष प्रधनता के वर्चस्व के कारण महिलाओं के लिए समस्याएँ उत्पन्न होती है। पिछले कुछ समय में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़नों में काफी तेजी से वृद्धि हुई है और पिछले कुछ दशकों में लगभग 170 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली है।

 2018 में यूनिसेफ के एक रिपोर्ट द्वारा पता चलता है, कि भारत में अब भी हर वर्ष लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले ही कर दी जाती है, जल्द शादी हो जाने के कारण महिलाओं का विकास रुक जाता है और वह शारीरिक तथा मानसिक रुप से व्यस्क नही हो पाती हैं।

महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

सरकार की प्रमुख योजना दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) के तहत, लगभग 90 लाख महिला स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) समूह कार्यरत हैं, जिनमें लगभग 10 करोड़ महिला सदस्य हैं। इनके द्वारा महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के संबंध में ग्रामीण परिदृश्य को बदला जा रहा है।

महिलाओं के रोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए, हाल ही में अधिनियमित श्रम संहिताओं में कई सक्षम प्रावधान शामिल किए गए हैं। महिला श्रमिकों के लिए अनुकूल कार्य वातावरण बनाने के लिए वेतन संहिता, 2019, औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी स्थिति संहिता, 2020 और सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री किसान मान धन योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना इत्यादि जैसी किसान कल्याण योजनाएं महिला किसानों के लिए एक सक्षम वातावरण बनाती हैं। इन पहलों के माध्यम से सरकार कृषि विस्तार सेवाओं सहित उत्पादक संसाधनों तक कृषक महिलाओं की पहुंच में सुधार कर रही है, जिससे ग्रामीण महिलाओं के जीवन में समग्र सुधार आ रहा है।

क्या कहते है इस विषय में हल्द्वानी के कुछ सहायता समूह के सदस्य

नीमा नेगी का कहना है कि तहसील हल्द्वानी में उनके द्वारा हिलांश किचन शुरू किया। अब तहसील परिसर में टेंडर खत्म होने के बाद पास ही खान चंद मार्किट में उनके समूह द्वारा दुकान किराये पर ले कर सुबहे 10 बजे से रोज आस-पास के लोगों को खाना चाय आदि सर्विस दी जाती है। उनके द्वारा बताया गया कि सरकार द्वारा लखपति दीदी योजना चलायी जा रही है जिसमे महिलाओ को 5 लाख तक का बिना ब्याज कि ऋण दिया जाता है।

 

जानकी बिष्ट ने बताया कि उनके द्वारा 2017 से सहायता समूह में रोजगार की शुरुवात की है। 2018 व  19 में सुशीला तिवारी अस्पताल में अम्मा भोजनालय चलाया। ब्लॉक द्वारा समय-समय में महिलाओ के सहायता समूह को जानकारी दी जाती है। काम के साथ वह परिवार को भी पूरा समय देती है। छुट्टी के दिन पूरा परिवार एक साथ रहता है। वही उनके द्वारा बताया गया कि दुकान में पहाड़ी व्यंजन में भट्ट कि चुर्कानी, गोहत कि दाल, झोली भात, राजम चावल, डुबके आदि दिन के हिसाब से बनाये जाते है।

 

मोहनी जलाल ने कहा कि काम में व्यस्तता बहुत है। सुबह से शाम जाते जाते 6 से 6.30 बज जाते है। सहायता समूह से जुड़े हुए उन्हें 3 से 4 साल हो गए है। बच्चे बड़े होने से घर में बच्चो को देखने कि कोई ऐसी जरुरत नहीं होती। बच्चे खुद ही अपना काम कर लेते है,  आत्मनिर्भर बनने से उनके घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक रहती है।

 

 

 

अब महिलाओ ने पार्किंग का कार्य करना भी शुरू कर दिया है। महिलाये को यदि रोटी कमानी है तो बाहर भागना ही पड़ेगा। प्रेमा जोशी जी का कहना है कि उनके समूह में 10 लोग है। जिनमे से 3 लोग हल्द्वानी तहसील में पार्किंग का काम करते है। मोदी जी द्वारा महिलाओ को आगामी चुनाव में ३३ प्रतिशत आरक्षण दिये जाने पर उन्होंने भी आगे बड़ने के लिए चुनाव लड़ने कि इच्छा जागृत की है।

 

 

सुनीता देवी ने बताया कि परिवार में अपने सहयोग देने के लिए वह सुबहे 9.30 बजे से तहसील में कैंटीन चलाती है। परिवार में बच्चो को उनके सास ससुर देखते है चार से पांच साल से वे सहायता समूह से जुडी हुई है और तहसील में 2 साल के लिए जो महिलाओ को भोजनालय चलाने के लिए दिया जाता है। उसमे एक साल 2 महीने हो गए है और 10 माह का समय और बचा है।

 

 

चंपा देवी द्वारा बताया गया कि उनके समूह में 11 लोग है, जिनमे से 4 लोग तहसील में कैन्टीन चलाते है। दिनचरिया के बारे मैं पूछने पर बताया कि सुबह 9.30 बजे तहसील में आ जाते है। उसके बाद चाय और खाना बनाने में ही पूरा दिन निकल जाता है। वही उनके द्वारा कहा गया कि महिलाओ को सहायता समूह के रूप में रोजगार सरकार का एक अच्छा कदम है। बच्चो के बारे में उन्होंने बताया कि सुबहे बच्चो के लिए दिन का खाना बनाकर वह आ जाती है और स्कूल से आकर वे खुद खा लेते है।

 

 

बबीता शर्मा ने बताया कि सहायता समूह से जुड़े हुए उन्हें केवल 1-2 महीने ही हुए है और सहायता समूह से महिलाये आत्मनिर्भर बन रही है। उनके द्वारा कहा गया कि ब्लॉक ऑफिस द्वारा चलायी जा रही योजना आगे चलकर महिलाओ के लिए और कारगर सिद्ध होगी।


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