*विदेश भेजने के नाम पर 53 लाख ठगने वाले आरोपियों को कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए किया बरी…*
साक्ष्य के अभाव में न्यायालय ने दिया ‘संदेह का लाभ’;
रामनगर, नैनीताल: न्यायिक मजिस्ट्रेट/सिविल जज (जू०डि०), रामनगर, जिला नैनीताल के न्यायालय ने बहुचर्चित फौजदारी वाद संख्या-390/2022 (सरकार बनाम नितिन श्रीवास्तव आदि) में बुधवार, 18 जून 2025 को अपना महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। इस मामले में धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोपों का सामना कर रहे सभी अभियुक्तों को न्यायालय ने संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया है।
इस जटिल मुकदमे में अभियुक्तों की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री पंकज सिंह बिष्ट ने सशक्त पैरवी की। न्यायालय ने राज्य की ओर से उपस्थित विद्वान सहायक अभियोजन अधिकारी और अधिवक्ता श्री पंकज सिंह बिष्ट के तर्कों को विस्तार से सुना। अधिवक्ता बिष्ट ने अभियुक्तों के पक्ष में विभिन्न कानूनी दलीलें पेश कीं और यह साबित करने का प्रयास किया कि अभियोजन पक्ष के पास आरोपों को संदेह से परे साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं। न्यायालय ने पत्रावली का गहन अवलोकन किया और अभियोजन द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस (कागज संख्या 59क/1 लगायत 59क/13) पर भी विचार किया।
अभियुक्त नितिन श्रीवास्तव, सावर सिंह उर्फ राजीव, और राजीव (पुत्र पुत्तु लाल) पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 419 (प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी), 420 (धोखाधड़ी), 467 (मूल्यवान प्रतिभूति की जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के प्रयोजन से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज का उपयोग) और 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत आरोप लगाए गए थे।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, शिकायतकर्ता रमेश चन्द्र को उनके मित्र निशान्त अरोरा ने कनाडा जाने के लिए वीजा और फ्लाइट टिकट बनवाने के उद्देश्य से अमरजीत नामक व्यक्ति से मिलवाया था। अमरजीत ने राजीव (बी०एफ०एस०), दिनेश कुमार, राजू कुमार और अतुल (बी०एफ०एस०) जैसे अन्य लोगों के साथ मिलकर काम करने का दावा किया था। शिकायतकर्ता और उनके परिवार ने अमरजीत और राजीव को विभिन्न तिथियों पर लाखों रुपये हस्तांतरित किए थे, जिसमें नकद भुगतान और बैंक हस्तांतरण शामिल थे। शिकायतकर्ता ने राजीव और दिनेश से हनुमान धाम में मुलाकात करने और उनके साथ तस्वीरें लेने का भी दावा किया था।
न्यायालय ने अपने विस्तृत निर्णय में पाया कि अभियोजन पक्ष अभियुक्तों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को संदेह से परे स्थापित करने में बुरी तरह विफल रहा। न्यायालय ने शिकायतकर्ता के बयानों में विरोधाभासों को नोट किया और पाया कि आपराधिक षड्यंत्र को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत, जैसे कॉल डिटेल रिकॉर्ड या अभियुक्तों के खातों की विस्तृत जांच रिपोर्ट, प्रस्तुत नहीं की गई थी। विवेचक द्वारा की गई जांच भी इन महत्वपूर्ण बिंदुओं की पुष्टि करने में असफल रही, जिसके अभाव में न्यायालय ने तीनों अभियुक्तों को सभी आरोपों से दोषमुक्त करने का आदेश दिया।
इस निर्णय से अभियुक्तों और उनके परिजनों को बड़ी राहत मिली है, वहीं यह मामला कानून की प्रक्रिया में साक्ष्यों के महत्व को एक बार फिर रेखांकित करता है।
