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सड़क नहीं, डोली ही सहारा! उत्तराखंड के गांव की हकीकत

पतलचौरा गांव आज भी सड़क जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित

संवाददाता सीमा खेतवाल

अल्मोड़ा (भैसियाछाना)। विकासखंड भैसियाछाना के दूरस्थ गांव पतलचौरा की रहने वाली 40 वर्षीय भावना देवी गुरुवार को मवेशियों को चराने जंगल गई थीं। इसी दौरान ऊपर से अचानक पत्थर गिरने से उनके पैर में गंभीर चोट आ गई। घायल भावना देवी को उनके परिजनों ने किसी तरह डोली के सहारे पहले कनारीछीना बाजार और फिर वहां से गनाई अस्पताल पहुंचाया, जहां उनका पैर प्लास्टर किया गया।

यह घटना न केवल एक ग्रामीण महिला की परेशानी को उजागर करती है, बल्कि उस सड़क की विफलता की कहानी भी बयां करती है जो बीते पांच वर्षों से केवल कागजों में ही मौजूद है। पतलचौरा से कनारीछीना की ओर तकरीबन पांच किलोमीटर की दूरी के लिए आज भी ग्रामीणों को खड़ी चढ़ाई और ढलान में डोली और खच्चरों के सहारे बीमारों को ले जाना पड़ता है।

गौरतलब है कि पांच वर्ष पूर्व तत्कालीन विधायक रघुनाथ सिंह चौहान ने कनारीछीना-बिनूक-पतलचौरा सड़क मार्ग को स्वीकृति दिलाई थी, लेकिन अब तक इस मार्ग के निर्माण के लिए कोई बजट पारित नहीं किया गया है। वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) तथा सर्वेक्षण की प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है, फिर भी शासन-प्रशासन की ओर से निर्माण की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है।

प्रताप सिंह नेगी, जो वर्षों से इस मुद्दे को उठा रहे हैं, बताते हैं कि “इस मार्ग की अनुपलब्धता के कारण आज भी ग्रामीणों को बीमारों और गर्भवती महिलाओं को खतरनाक रास्तों से डोली में ले जाना पड़ता है। कई बार जंगलों के बीच रास्ते में ही महिलाओं का प्रसव हो चुका है। यह बेहद शर्मनाक स्थिति है।”

पतलचौरा गांव अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्र है, और उत्तराखंड राज्य गठन के 25 वर्षों बाद भी इस गांव को सड़क जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित रखना सरकारों की विफलता को उजागर करता है।


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