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बर्फीले तूफान में बचे मजदूरों की खौफनाक दास्तान

उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा गांव में 28 फरवरी को हुए भयंकर हिमस्खलन में सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के मजदूरों के साथ एक दिल दहला देने वाली घटना घटी। इस हिमस्खलन में 54 मजदूरों के एक समूह में से 46 को तो बचा लिया गया, लेकिन आठ अन्य मजदूरों की दुखद मौत हो गई।

इस भीषण आपदा में जीवित बचे मजदूरों ने अपनी खौफनाक आपबीती सुनाई। पंजाब के अमृतसर निवासी जगबीर सिंह ने बताया कि हिमस्खलन के समय वह बीआरओ के शिविर में अपने कंटेनर में सो रहे थे, तभी बर्फ ने उन्हें और उनके साथियों को कई मीटर नीचे धकेल दिया। इस दौरान उनका एक पैर टूट गया और सिर में गंभीर चोटें आईं। उन्होंने बताया, “हमारे एक साथी की मौके पर ही मौत हो गई, और बाकी साथी किसी तरह बर्फ के बीच एक होटल में शरण लेने पहुंचे, जहां हम 25 घंटे तक फंसे रहे। हमें प्यास लगी तो हमने बर्फ खाई और ठंड से जूझते रहे।”

उत्तरकाकाशी के मनोज भंडारी ने बताया कि हिमस्खलन इतना जबरदस्त था कि केवल 10 सेकेंड में ही उनके कंटेनर 300 मीटर नीचे गिर गए। बर्फ में दबने के बाद कुछ मजदूरों ने बर्फ के बीच से नंगे पैर चलकर सेना के एक खाली गेस्ट हाउस में शरण ली, जहां वे बचाव दल के आने का इंतजार कर रहे थे।

हिमस्खलन के बाद कई मजदूरों को घंटों तक बर्फ के नीचे दबे रहने के बाद बचाया गया। बिहार के वैशाली जिले के मुन्ना प्रसाद ने बताया कि “हम 12 घंटे तक बर्फ के नीचे पड़े रहे। बर्फ से हमारी नाक बंद हो गई थी, सांस लेना मुश्किल हो गया था, लेकिन सेना और आईटीबीपी की टीमें समय रहते हमें बचाने आ गईं।”

कुछ मजदूरों ने अपने जीवन की कीमत पर उन स्थानों में शरण ली, जहां उन्हें जान का संकट था, जैसे सेना के शिविर और खाली पड़े होटल। सभी मृतकों के शव बरामद कर लिए गए हैं, और घायल मजदूरों को सैन्य अस्पताल में इलाज दिया जा रहा है।

वहीं, हिमस्खलन के समय कुछ मजदूरों ने बताया कि क्षेत्र में पहले हल्का हिमस्खलन भी हुआ था, जिसे देखते हुए वे पहले से सचेत थे। लेकिन मुख्य हिमस्खलन ने अचानक उन्हें बर्फ में घेर लिया और उनके बचाव के लिए सेना को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

इस घटना ने उत्तराखंड के माणा गांव की संवेदनशीलता को और अधिक उजागर किया है, जहां सर्दियों में सेना भी अपनी नियमित गतिविधियाँ कम कर देती है।


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