बड़े नेताओं के लिए दल बदल के द्वार खुले, लेकिन छोटे कार्यकर्ताओं का भविष्य अधर में, बागियों पर बड़ी कार्यवाही
राजनीति का खेल हमेशा से ही बड़े नेताओं के लिए लुभावना रहा है, लेकिन जब बात छोटे कार्यकर्ताओं की आती है, तो उनके लिए यह दुनिया काफी कठोर और असमान नजर आती है। बड़े नेता किसी भी समय पार्टी छोड़ सकते हैं और दूसरी पार्टी में शामिल हो सकते हैं, लेकिन वही छोटे कार्यकर्ता, जिन्होंने वर्षों तक पार्टी के लिए खड़ा होकर संघर्ष किया है, उन्हें अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है।
आज के दौर में दल बदलने के मामले में बड़े नेता खुलकर सामने आते हैं। उनका कारण साधारण सा होता है, “राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों का मेल”। जहां एक तरफ छोटे कार्यकर्ता अपने परिवार और समाज की अपेक्षाओं को लेकर पार्टी में काम करते हैं, वहीं बड़े नेता अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए दल बदलते रहते हैं। इस दौरान छोटे कार्यकर्ताओं को कहीं न कहीं यह महसूस होता है कि वे सिर्फ साधन बने हैं, जिनका इस्तेमाल सत्ता तक पहुंचने के लिए किया जाता है, और अंततः उन्हें छोड़ दिया जाता है।
कभी यही छोटे कार्यकर्ता थे, जो पार्टी के लिए खून, पसीना और आंसू बहाते थे, लेकिन जैसे ही चुनाव नजदीक आते हैं और पार्टी की सीटें तय होने लगती हैं, उनकी अहमियत खत्म होती नजर आती है। चुनावी मैदान में उतरने के लिए दावेदारी करने वाले छोटे कार्यकर्ताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
इस असमानता का मुख्य कारण राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा कार्यकर्ताओं की अनदेखी और उनपर बढ़ते दबाव से होता है। दल बदलने की आज़ादी नेताओं के पास होती है, लेकिन छोटे कार्यकर्ताओं के लिए यह विकल्प नहीं होता। उन्हें पार्टी की लाइन के मुताबिक ही चलना होता है, और अगर वे अपनी इच्छाओं और स्वप्नों को साकार करने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें बाहर का रुख दिखा दिया जाता है।
राजनीति में भाग्य कभी भी पलट सकता है, लेकिन यह पलटाव छोटे कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा ही दर्दनाक साबित होता है। जब बड़े नेता दल बदलने के बाद खुशहाल होते हैं, तो छोटे कार्यकर्ताओं की हालत बदतर हो जाती है। उन्हें न तो अपनी मेहनत का फल मिलता है और न ही उनके द्वारा की गई निष्ठा और समर्पण की कोई कद्र होती है।
यह स्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि पार्टी की नीतियों में बदलाव की सख्त आवश्यकता है, जहां कार्यकर्ताओं को भी उतनी ही अहमियत दी जाए, जितनी नेताओं को दी जाती है। छोटे कार्यकर्ताओं के संघर्ष को सम्मान मिलना चाहिए, ताकि वे भी पार्टी के लिए काम करने में समर्पित रहें, और उनका भविष्य भी सुरक्षित हो सके।
